अमृतसरएक घंटा पहले
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- खुद को कैंडीडेट मान कर रहे तैयारी, टिकट जिसे भी मिले जिताएंगे
शिवराज द्रुपद | अमृतसर
पंजाब खास करके सरहदी जिले अमृतसर की मिट्टी की ही खासियत है कि यहां बाहर वाले के मुकाबले स्थानीय को अहमियत मिलती है। कमोबेश, लोकसभा चुनावों के संदर्भ में देखें तो पूरी तरह से सटीक बैठती है। आगामी 2024 के लोकसभा चुनावोंं के लिए भाजपा की पूर्व सहयोगी पार्टी अकाली दल की ओर से अमृतसर लोकसभा सीट का इंचार्ज भाजपा के पूर्व नेता अनिल जोशी को बनाए जाने के बाद भाजपा अपने उम्मीदवार के संदर्भ में नजरिया और रणनीति दोनों में ही बदलाव करेगी।
वैसे तो अभी भाजपा को अपने खेमे में जिताऊ उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा है और ऐसे में पैरा-शूटर लाना भी जोखिम भरा है क्योंकि यहां बाहरी उम्मीदवारों को शिकस्त ही मिली है। चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो 1952 से साल 2019 के बीच हुए 20 चुनावों में भाजपा को 6 बार जीत मिली है और इसमें से 3 बार नवजोत सिंह सिद्धू की भागीदारी रही है।
चुनावों के समीकरण से साफ है कि यहां पर लोक सभा चुनाव में वही चलेगा जो स्थानीय हो और पार्टी के साथ-साथ खुद की भी पहचान रखता है। क्योंकि अतीत में सिद्धू को छोड़ जितने जीते हैं सभी कद्दावर और लोकल जीते हैं। बाहरी को मतदाताओं ने हमेशा नकारा ही है। खैर, जोशी स्थानीय हैं और जनता में पैठ रखने के साथ ही हिंदू होने और भाजपा वोटरों पर अभी भी दखल रखते हैं।
यही वजह है कि पार्टी अब अपने उम्मीदवार को उतारने से पहले पूरा ठोंक-बजा कर फैसला लेगी। भाजपा जिला प्रधान हरविंदर सिंह संधू का दावा है कि साल 2024 का चुनाव भाजपा के खाते में आएगा। उनका कहना है कि हाईकमान के दिशानिर्देश और प्रांतीय अध्यक्ष सुनील जाखड़ की अगुवाई में वह लोग हरेक विधान सभा, वार्ड, बूथ और घर-घर तक जा रहे हैं। उनका कहना है कि यह तैयारी वह खुद को कैंडीडेट मानकर कर रहे हैं। यानी कि पूरी समर्पित भावना से। वह कहते हैं कि आगे हाईकमान जिस किसी को भी मैदान में उतारेगा उसके साथ पूरी टीम जिताने के लिए खड़ी होगी।
फिलहाल इसका भी खुलासा संभवतया जल्दी हो जाएगा। 1952-1998 यानी 46 बरसों में 3 बार जीत : लोकसभा चुनावों के 1952 से 1998 तक यानी कि 46 बरसों के नतीजों पर नजर डालें तो साल 1967 में यज्ञदत्त शर्मा जीते थे, उस वक्त भाजपा भारतीय जनसंघ हुआ करती थी। इसके बाद साल 1977 में जनता पार्टी बनने पर बलदेव प्रकाश चुनाव लड़े और जीते।
इसके 21 साल बाद यानी कि 1998 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर दया सिंह सोढी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। सिद्धू बने संजीवनी : साल 2004 में चुनावों में उतरे क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने जीत हासिल कर भाजपा के लिए संजीवनी का काम किया। किक्रेटर और अच्छा वक्ता होने के चलते साल 2007 के उप चुनाव में फिर वह जीते। इसके बाद 2009 के उप चुनाव में सिद्धू फिर जीते। हालांकि सिद्धू पटियाला से हैं लेकिन यहीं पर बस गए। बाहरी को ना : साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चुनाव लड़ा था। उनके मुकाबले भाजपा ने तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को मैदान में उतारा लेकिन वह कैप्टन से हार गए। इसके बाद कैप्टन के सीएम बनने के बाद साल 2017 के उप चुनाव में गुरजीत औजला ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा, जबकि भाजपा ने सिख चेहरा राजिंदर मोहन सिंह छीना को उतारा और वह हार गए। इसके बाद साल 2019 के हुए चुनाव ने नया चेहरा केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी को उतारा और वह भी औजला के मुकाबले हार गए।
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