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छत्तीसगढ़ की एक और पंडवानी गायिका ऊषा बारले को पद्मश्री सम्मान मिलेगा। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत सरकार की ओर से इसकी घोषणा की गई है। दुर्ग की रहने वाली ऊषा बारले को बचपन में उनके पिता ने गायन के चलते ही कुएं में फेंक दिया था, लेकिन इसी के दम पर वह सम्मान के शिखर पर पहुंची। खास बात यह है कि ऊषा बारले ने तीजनबाई से ही पंडवानी सीखी है। इससे पहले तीजनबाई को पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण सम्मान दिया जा चुका है। 



पंडवानी गायन की शिक्षा के लिए राज्य में खुले स्कूल

पद्मश्री सम्मान के लिए उनके नाम की घोषणा होने के बाद ऊषा बारले और उनका पूरा परिवार बेहद खुश है। ऊषा बारले बताती हैं कि पहले वह पंथी गाना गाती थीं, लेकिन बाद में उनकी रुचि पंडवानी की तरफ हो गई। इसके लिए सबसे पहले उनके फूफा ही उनके गुरू बने। इसके बाद प्रख्यात गायिका तीजनबाई से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की। वह कहती हैं कि, राज्य सरकार पंडवानी की शिक्षा के लिए स्कूल खोले। जिसमे पंडवानी के रुचि रखने वाले बच्चो को शिक्षा दे सकें।


परिजनों ने बाल्टी से बाहर निकाला

ऊषा बारले ने बताया कि बचपन में गाना गाने से गुस्सा में आकर उनके पिता ने भिलाई के शारदा पारा स्थित कुएं में फेंक दिया था। उस समय कुएं में पानी कम था। इसके कारण वे बच गईं। उनके परिजनों ने बाल्टी और रस्सी को मदद से बाहर निकाला। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और प्रस्तुति देती रहीं। वह बताती हैं कि पंडवानी गायन छत्तीसगढ़ की प्राचीन विद्या हैं। इसे गायन के माध्यम से महाभारत की कथा सुनाई जाती है। वे छत्तीसगढ़ के प्राचीन गहने पहनकर प्रस्तुति देती हैं। 


अब तक कई सम्मान मिल चुके

ऊषा बारले ने भारत के विभिन्न राज्यों सहित लंदन और न्यूयॉर्क में भी पंडवानी की प्रस्तुति दी है। पंडवानी के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गुरु घासीदास सामाजिक चेतना पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही उन्हें भिलाई स्टील प्लांट प्रबंधन द्वारा दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान से सम्मानित और गिरोधपुरी तपोभूमि में भी वे छह बार स्वर्ण पदक से सम्मानित की जा चुकी हैं। 




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By o24

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