देश के किसी भी एम्स में स्किन बैंक नहीं: पीजीआई में बन रहा रीजन का पहला स्किन बैंक, बर्न केसेज में बचाएगा जान

Punjab

चंडीगढ़38 मिनट पहलेलेखक: मनाेज अपरेजा

  • कॉपी लिंक

पीजीआई में नाॅर्दन रीजन का पहला स्किन बैंक खुलने जा रहा है। इस बैंक की मदद से बर्न केसेज, खासकर छोटे बच्चों की, में झुलसे मरीजाें की जान बचाने और उन्हें जल्द ठीक करने में मदद मिलेगी। पीजीआई इसे इसी साल जुलाई में शुरू करने की तैयारी में है। अभी देश के किसी भी एम्स में स्किन बैंक की सुविधा नहीं है।

पीजीआई के डिपार्टमेंट ऑफ प्लास्टिक सर्जरी के एचओडी प्राे. अतुल पाराशर ने बताया कि 50 फीसदी से ज्यादा झुलसे मरीज की बाॅडी में ब्लड टिश्यू और फ्लूड की कमी हाे जाती है। इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। झुलसे बच्चाें के जले हुए हिस्से पर स्किन ट्रांसप्लांट कर उन्हें जल्द ठीक किया जा सकेगा।

जाे स्किन ट्रांसप्लांट की जाती है वह टेम्परेरी हाेती है। ट्रांसप्लांट के 20-30 दिन के बाद मरीज की अपनी स्किन डेवलप हाेने लगती है। ऐसे में ट्रांसप्लांट की गई स्किन उतर जाती है। तब तक मरीज ठीक हाेने लगता है। जाे गैप रह जाता है उसे उसी मरीज की स्किन लेकर ग्राफ्ट कर दिया जाता है।

इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि झुलसे मरीज को टिश्यू और फ्लूड लाॅस नहीं हाेता। इंफेक्शन की आशंका कम हो जाती है और जान जाने का खतरा नहीं रहता। मरीज जल्द ठीक भी हाे जाता है। छोटे बच्चों के झुलसने पर उनकी बाॅडी से स्किन निकालना मुश्किल हाेता है, क्योंकि छोटे शरीर से स्किन निकालने की जगह भी कम होती है।

बच्चाें में ब्लड टिश्यू और फ्लूड लाॅस का खतरा व्यस्क के मुकाबले ज्यादा हाेता है। वहीं बच्चा 50 फीसदी से ज्यादा जल जाए तो भी उसके शरीर से स्किन निकालना मुश्किल है। इसलिए पीजीआई की प्राथमिकता छाेटे बच्चे हैं। चूंकि उनके पेरेंट्स भी बच्चे की देखभाल में लगे हाेते हैं, ऐसे में उनकी बाॅडी से स्किन लेना भी थाेड़ा मुश्किल हाेता है। स्किन बैंक का लाभ ऐसे ही मरीजाें काे होगा।

स्किन को 5 साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है…
प्रो. पाराशर के मुताबिक- जिस तरह ऑर्गन डाेनेशन के लिए पीजीआई का राेटाे डिपार्टमेंट मृतक के परिजनाें काे ऑर्गन डाेनेशन के लिए प्रेरित करता है, उसी तरह अब स्किन डाेनेशन के लिए प्रेरित किया जाएगा। मृत शरीर के अन-एक्सपोज्ड हिस्से से स्किन निकाली जाती है। हालांकि यह डाेनेट करने वाले परिवार की कंसेंट पर निर्भर करेगा। स्किन डाेनेशन के प्रति लाेगाें काे जागरूक करने के लिए ब्राॅशर छपवाए जा रहे हैं। ब्रेन डेड पेशेंट के शरीर से स्किन निकालकर उसे ग्लिसराेल में डाल दिया जाएगा।

तीन हफ्ते तक स्किन ग्लिसराेल में रखी रहेगी। इससे स्किन में जाे भी इंफेक्शन है वह निकल जाएगी। उसके बाद प्राेसेसिंग की जाएगी। उसका 6 बार कल्चर किया जाता है, उसकी रिपाेर्ट नेगेटिव आने के बाद ही यह तय किया जाता है कि यह स्किन ट्रांसप्लांट के याेग्य है। इसे मायनस 4 डिग्री में रखा जाता है।

इसे कहीं और जरूरत पड़ने पर पैक करके भेजा भी जा सकता है। यह पांच साल तक सुरक्षित रखी जा सकती है। देशभर में 17 स्किन बैंक… अभी महाराष्ट्र, उड़ीसा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, जयपुर में स्किन बैंक हैं। जयपुर में सरकारी सवाई मानसिंह हाॅस्पिटल में यह सुविधा शुरू की गई है।

प्याज के छिलके से भी पतली स्किन निकाली जाती है… प्रो. पराशर ने बताया- डेड मरीज की थाई या पीठ से प्याज के छिलके से भी पतली स्किन निकाली जाती है। इसे ट्रांसप्लांट के याेग्य बनाने के लिए प्राेसेस किया जाता है। वैसे ताे आर्टिफिशियल स्किन आती है, लेकिन महंगी पड़ती है। स्किन का 10 बाय 10 हिस्सा 70-80 हजार रुपए का आता है। इसे ट्रांसप्लांट में इस्तेमाल करना महंगा पड़ता है।


Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *