
कार्यकारिणी बैठक में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव।
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सपा ने रामचरित मानस की चौपाई के बहाने 85-15 के फॉर्मूले के हिसाब से बंटवारा कर पिछड़ों को पक्ष में करने की मुहिम से पैर पीछे खींच लिए हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में धार्मिक पुस्तकों और धर्म से जुड़े संतों पर टिप्पणी से बचने का संदेश देकर समाज में किसी को भी छोड़ने की जगह सभी वर्गाें को साधने की रणनीति पर बढ़ने का संदेश दिया गया है।
कार्यकारिणी को लेकर सबसे ज्यादा नजर इसी बात पर थी कि रामचरित मानस को लेकर की गई स्वामी प्रसाद मौर्य की टिप्पणी पर पार्टी क्या स्टैंड लेती है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने पिछले दिनों लगातार धार्मिक टिप्पणी की। रामचरित मानस की चौपाई ढोल, गंवार, सूद्र, पशु, नारी…. को लेकर इस तरह सवाल उठाया कि सपा को आलोचना का शिकार होना पड़ा। इतना ही नहीं पार्टी के भीतर से भी विरोध शुरू हो गया। लेकिन, स्वामी प्रसाद की सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद यह मुद्दा ज्यादा चर्चा का विषय बना। दरअसल, स्वामी ने मुलाकात के बाद बात तो जातीय जनगणना को मुद्दा बनाने को लेकर की, लेकिन बयानबाजी रामचरित मानस पर बढ़ती गई। हालात ये हो गए कि पार्टी दो फाड़ नजर आने लगी।
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पार्टी के मुख्य सचेतक मनोज पांडेय एवं पवन पांडेय ने रामचरित मानस पर की गई टिप्पणी पर आपत्ति जताई तो पार्टी के विधायक तूफानी सरोज सहित कई नेता स्वामी प्रसाद के समर्थन में आ गए। पार्टी ने मानस की तरफदारी करने पर आगरा से पार्टी उम्मीदवार रहीं रोली तिवारी और प्रयागराज पश्चिम की उम्मीदवार रही रिचा सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता तक दिखा दिया। इस बीच राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने स्वामी प्रसाद के बयान को उनका निजी बयान बताया, लेकिन बयानबाजी थमी नहीं।
पार्टी में दो ध्रुव बन गए। एक स्वामी प्रसाद के बयान का समर्थन करता, तो दूसरा विरोध। इस बीच स्वामी प्रसाद लगातार किसी न किसी बहाने टिप्पणी करते रहे। विधानमंडल के भी दोनों सदनों में यह मुद्दा उठा। इस बीच पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने विवादित बयान की समीक्षा की, जिसमें नफा कम, नुकसान ज्यादा होने की आशंका नजर आई। इसे देखते हुए राष्ट्रीय कार्यकारिणी में किसी तरह के धार्मिक एवं विवादित बयान से बचने का संदेश दे दिया है।
मंच पर नहीं मिली जगह
पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य को मंच पर जगह नहीं मिली। इसे राष्ट्रीय कार्यकारिणी जैसे मंच का किसी विवादित मुद्दे पर केंद्रित होने से बचने के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि, स्वामी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मौजूद रहे।