बिलासपुर में एसबीआर कॉलेज के खेल मैदान व उसके पास की दो एकड़ 40 डिसमिल जमीन का मामला न्यायालय के झमेले में उलझ रहा है। ट्रस्ट का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य सरकार को भी इस जमीन के उपयोग करने का अधिकार नहीं है। इसका अधिकार केवल शिव भगवान रामेश्वर लाल चैरिटेबल ट्रस्ट को है। लेकिन, जानबूझकर राजनीतिक षडयंत्र कर इस जमीन के स्वामित्व को उलझाने का खेल चल रहा है।
शिव भगवान रामेश्वर लाल चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष कमल बजाज कहना है कि, ये पारिवारिक जमीन है। बजाज परिवार ने साल 1944 में ट्रस्ट का गठन कर 10 एकड़ जमीन दान में दी थी। जिसमें ट्रस्ट ने इलाके में बेहतर उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए कॉलेज खोला। वित्तीय और पारिवारिक स्थितियों के बीच यह कॉलेज 1975 में सरकार को दे दिया गया। कॉलेज भवन और करीब 10 एकड़ जमीन सरकार को सौंपी गई।
1958 में खरीदी गई थी खेल मैदान की जमीन
ट्रस्ट की तरफ से यह भी बताया गया कि, कॉलेज के सामने मौजूद 2.38 एकड़ जमीन है, जिसका उपयोग खेल के मैदान के रूप में किया जा रहा है। उसे कॉलेज के लिए दान की जमीन बताया जा रहा है। जबकि ट्रस्ट ने साल 1958 में उसे खरीदा था और राजस्व रिकार्ड में यह जमीन ट्रस्ट के नाम पर है। ऐसे में यह कॉलेज की दान में दी गई जमीन कैसे हो सकती है।
चैरिटेबल ट्रस्ट और कॉलेज में केवल नाम का है संबंध
यह भी कहा गया है कि शिव भगवान रामेश्वर लाल चैरिटेबल ट्रस्ट और शिव भगवान रामेश्वर लाल कॉलेज के बीच कभी कोई संपत्ति का संबंध नहीं रहा है। दोनों के बीच केवल नाम का संबंध रहा है। शिव भगवान रामेश्वर लाल चैरिटेबल ट्रस्ट बजाज परिवार की एक अलग संस्था है, जिसे अब शिव भगवान रामेश्वर लाल कॉलेज से जोड़कर षडयंत्र किया जा रहा है।
हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी सबकी निगाहें
अब यह मामला हाईकोर्ट में चल रहा है। राज्य शासन की तरफ से भी इस केस में अपील पेश करने की बात कही गई है। डिवीजन बेंच ने प्रारंभिक सुनवाई करते हुए जमीन की रजिस्ट्री पर अंतरिम रोक लगा दी है। साथ ही कहा है कि जमीन की रजिस्ट्री हो चुकी है तो हाईकोर्ट का फैसला आने तक इसे शून्य घोषित किया जाए। साथ ही जमीन के खरीदारों को भी पक्षकार बनाया जाए। ऐसे में अब इस पूरे मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर सबकी निगाहें टिकी हुई है।
जमीन हथियाने के लिए किया गया षड्यंत्र
इधर, ट्रस्ट से हटाए गए अतुल बजाज व अन्य का कहना है कि 40 साल से मृत पड़ी जमीन हथियाने के लिए जीवित किया गया है। इसमें ट्रस्ट के सारे नियमों को दरकिनार किया। नियम के अनुसार परिवार के मुखिया के जीवित रहते कोई भी पुत्र ट्रस्टी नहीं बन सकता। लेकिन, कमल बजाज ने अपने बेटे चिराग बजाज को ट्रस्टी बना दिया है। इसके बाद नियमों के खिलाफ जमीन की बिक्री कर दी गई है। ट्रस्टी से याचिकाकर्ताओं को हटा दिया गया है, जिसके खिलाफ कोर्ट में केस चल रहा है। वहीं, अब ट्रस्ट की जमीन बेचने के खिलाफ भी मामला हाईकोर्ट में चल रहा है।